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21.08.2023

Ph.D Admission Direct Interview list 2023 

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Welcome to the Department of Hindi, University of Delhi.


हिंदी विभाग की स्थापना संस्कृत विभाग के साथ संयुक्त तत्वावधान में संस्कृतज्ञ महामहोपाध्याय पंडित लक्ष्मीधर शास्त्री की अध्यक्षता में सन् 1948 में हुई । 1952 में अंग्रेजी-हिंदी-संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान डॉ॰ नगेन्द्र की अध्यक्षता में हिंदी-विभाग स्वतंत्र रूप से स्थापित हुआ । विभाग की स्वतंत्र स्थापना का उद्देश्य यह था कि हिंदी भाषा और साहित्य आदि विभिन्न क्षेत्रों में शोध, शिक्षण-प्रशिक्षण तथा विमर्श आदि स्वतंत्र रूप से किए जा सकें । साथ ही विदेशी विद्यार्थियों को हिंदी भाषा, साहित्य और भारतीय संस्कृति से परिचित कराया जा सके । हिंदी को रोजगारोन्मुखी बनाने के लिए अनुवाद, विदेशी छात्रों के लिए डिप्लोमा/ सर्टिफिकेट, जनसंचार क्षेत्र में पत्रकारिता डिप्लोमा जैसे पाठ्यक्रमों का सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है । इस दिशा में निरंतर विकास हो रहा है । समय-समय पर पाठ्यक्रम, शिक्षण-प्रशिक्षण व शोध को अद्यतन तथा प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया जा रहा है ।

विभागाध्यक्ष की कलम से

विभागाध्यक्ष की कलम से ...

आज देश और दुनिया भर में हिंदी बोलने-जानने वाले लोगों की संख्या अधिक है । दुनिया के लगभग 200 विश्वविद्यालयों और संस्थाओं में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है । हिंदी हमारी अपनी भाषा है । अपनेपन की भाषा है । भूमंडलीकरण के इस दौर में हिंदी दुनिया के कई देशों में सूचना, संवाद और व्यापार की एक मजबूत ताकत के रूप में पहचानी जा रही है । दुनिया के अनेक देशों में हिंदी भाषा को लेकर भाषाई और सांस्कृतिक कारणों से गहरी रुचि है । इस कारण आज हिंदी भाषा की अंतरराष्ट्रीय भूमिका का निरंतर विस्तार हो रहा है । आज हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर नयी पहचान मिल रही है ।

हिंदी के चरित्र से जुड़ी एक विशेषता यह है कि इसकी लोकतन्त्र और राष्ट्र के प्रति मौलिक आस्था है । इसका यह गुण दुनिया को इस भाषा के प्रति आश्वस्त करता है । इसका कारण यह है कि हिंदी अपनी प्रकृति और संस्कृति दोनों तरह से विस्तारशील है । यह भाषा हमेशा अन्य भाषाओं के साथ समभाव, सहभाव और समन्वयपूर्ण समावेश की पक्षधर रही है । पिछले कुछ दशकों में भारत के वैश्विक व्यापार- संपर्कों और संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है । दुनिया के विभिन्न देशों के लिए भारत एक बड़ा और संभावनाओं से भरा बाज़ार है । निश्चय ही यह कहा जा सकता है कि हिंदी अपने गौरवशाली अतीत और विकासशील वर्तमान के साथ विश्व के भविष्य और भविष्य के विश्व की भाषा है ।